वाराणसी की प्राचीन मार्शल आर्ट मुस्ति युद्ध कला होती जा रही है अब गायब

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वाराणसी की मुस्ति युद्ध कला के बारे में शायद आपने सुना हो। 1960 के दशक में यह एक लोकप्रिय कला रूप था, किन्तु बनारस में अब यह बहुत कम दिखाई देता है। संस्कृत भाषा में मुस्ति (मुट्ठी) और युद्ध (लड़ाई) से, नाम का अर्थ है “मुट्ठी लड़ाई”(लड़ाई, लड़ाई तथा संघर्ष )।अब यह कला आमतौर पर वाराणसी में मुकी मुक्केबाजी को संदर्भित करता है, जो एकमात्र जीवित निहत्था शैली है। पंजाब राज्य में में, लोह-मुस्ती के रूप में जानी जाने वाली मुक्केबाजी का एक सशस्त्र रूप अभी भी प्रचलित है, जिसमें पहलवान एक हाथ में लोहे की अंगूठी पहनते हैं, हालांकि अब इसका उपयोग मुक्केबाजी के लिए नहीं किया जाता है। बनारस में मुस्ति युद्ध शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास में बहुत सहायक मन जाता है । मुक्केबाजी को इस पारंपरिक भारतीय मार्शल आर्ट का परिष्कृत रूप कहा जाता है ।