फिल्म ‘ रेखा ‘ सड़क पर रहने वालों के प्रति समाज के रवैये पर सवाल उठाती है

Uncategorized

गोवा – 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में भारतीय पैनोरमा के नॉन-फीचर वर्ग में सड़क पर रहने वाले लोगों के रोज़मर्रा के संघर्ष, उनकी स्वच्छता और स्वच्छता के मुद्दों और उनके प्रति समाज के रवैये पर एक फिल्म दिखाई गई। ‘रेखा’ नाम की इस मराठी, नॉन-फीचर फिल्म के निर्देशक शेखर बापू रणखंबे ने कहा, “हम सड़क पर रहने वालों के लिए अपने दरवाजे बंद कर देते हैं। लेकिन हम ऐसा क्यों करते हैं? सड़क पर रहने वालों की इस बदकिस्मती और समाज की ऐसी उपेक्षा के कारण का पता लगाने की खोज ने मुझे इस प्रोजेक्ट पर डेढ़ साल तक शोध करने के लिए प्रेरित किया। सड़कों पर रहने वाली महिलाओं के जीवन में कठिनाइयों को पेश करते हुए फिल्म उनके मासिक धर्म की स्वच्छता की खराब हालत पर भी ध्यान केंद्रित करती है। उन्होंने कहा, “इस विषय पर शोध करते हुए मैं उनकी हकीकत के बारे में जानकर चौंक गया। वे महीनों तक नहा नहीं पाती हैं।”

फिल्म की सूत्रधार रेखा सड़क किनारे रहती है। त्वचा के एक फंगल संक्रमण से पीड़ित रेखा को डॉक्टर नहाने और दवा लगाने की सलाह देते हैं। लेकिन उसका पति उसे रोकता है और उसके साथ बुरा व्यवहार करता है। रेखा नहाने की कोशिश करती है लेकिन तब चौंक जाती है जब उसके समुदाय की महिलाएं उसे ऐसा न करने का कारण बताती हैं। जानकर वो दुविधा में पड़ जाती है। वो अपने पति को छोड़ने का फैसला करती है ताकि संक्रमण से निपटने के लिए नहा सके। फिल्म स्वच्छ रहने को लेकर उसकी कठिनाइयों को दर्शाती है।