जाएँ तो जाएँ कहाँ ये बन्दर , उनके जंगल तो छीन लिए हमने
आगरा – बंदरों का शहरों में स्थानान्तरण करना भारत के शहरों में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों जापान , थाईलैंड , साऊथ अफ्रीका आदि में भी समस्या है। बंदर लंबे समय से दुनिया भर के मंदिरों और पर्यटन स्थलों में एक विशेष आकर्षण रहे हैं। ये बुद्धिमान जानवर माने जाते हैं। ये पहले शहरी केंद्रों से दूर रहते थे, खुद को बड़े शहरों के किनारे तक सीमित रखते थे।किन्तु वनों की कटाई, पशु कृषि, औद्योगीकरण और तेजी से बढ़ते शहरों ने बंदरों के आवास को मुश्किल बना दिया है । इसी कारण बंदरों की कई प्रजातियां भोजन, आश्रय और पानी के लिए शहरों में आश्रय खोजती जा रही हैं।
पहले बंदर लंबे समय से मंदिरों के आसपास रह करते थे , जहां उन्हें अक्सर संरक्षित रखा जाता था। इन मंदिरों से वे पास के जंगलों में वे नियमित आना जाना करते थे । लेकिन शहरीकरण ने मंदिर का आसपास के जंगल समाप्त से होते जा रहे हैं , जिससे बंदर शहरों में बस्ते जा रहे हैं ।जैसे-जैसे बंदरों के प्राकृतिक आवास लगातार नष्ट होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे बंदरों का इंसानों से डर खत्म होता जा रहा है। नए खाद्य स्रोतों की तलाश में, वे खेतों पर छापा मारते हैं, भोजन की भीख माँगते हैं, और घरों और व्यवसायों से चोरी करते हैं। शहरी क्षेत्र बंदरों को आश्रय, भोजन, पानी और बड़े पेड़ों तक आसान पहुँच प्रदान करते हैं, जिससे जनसंख्या विस्फोट होता है। टेलीफोन और बिजली के तार उन्हें पूरे शहरी जंगलों में आसान पहुँच प्रदान करते हैं। एशिया के कई शहरों में बंदर अब गिलहरियों की तरह बहुतायत में हैं। वे रेलवे स्टेशनों पर घूमते हैं, सड़कों के किनारे भीख माँगते हैं, कूड़ेदान खोदते हैं और मनुष्यों से भोजन चुराते हैं।