जलेबियों की कहानी शुरू हुई थी आगरा से 150 वर्ष पूर्व

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आगरा । जलेबी का इतिहास आगरा से जुड़ा हुआ है । बताया जाता है लगभग 150 पूर्व नेम चंद जैन नाम का एक युवा लड़का किसी बड़े शहर में अपना भाग्य आज़माने के लिए  अपनी सात वर्ष की पत्नी के परिवार से दहेज में मिले 50 पैसे के साथ आगरा के नज़दीक के अपने पैतृक गांव को छोड़ दिल्ली चला गया। आगरा का यह बालक नेम चंद कई वर्षों तक दिल्ली में फेरीबला बनकर रबड़ी बेचने का काम करता रहा । इसके दोरान उसकी शम्सुद्दीन इफ़रान नाम के एक मुस्लिम व्यापारी से मुलाक़ात हुई जिसकी दरीबा कलां में चांदनी चौक के कोने पर एक दुकान थी । शम्सुद्दीन ने इस बालक को मेहनती देख उसे अपनी दुकान के सामने फुटपाथ पर एक स्टॉल लगाने का अवसर दिया । यहाँ नेम चंद ने जलेबी बनाना शुरू की । उसकी यह मिठाई तेजी से लोकप्रिय हो गई ।समय के साथ, नेम चंद की जलेबी की दुकान ने उसे दुकान के मालिक से अधिक अमीर बना दिया । उसने  गली खज़ांची में अपने परिवार के लिए एक बड़ी हवेली बनाने में सफलता पाई ।आज हवेली, जो शाहजहाँ के लेखाकारों की थी, से कुछ दरवाजे नीचे ढह रही है, लेकिन उस भव्यता की कल्पना करना संभव है जिसमें परिवार रहता था। साथ ही हवेली मैं सागौन-लकड़ी पैनलिंग और जर्मन मोज़ेक फर्श के अवशेष हैं। वर्तमान मालिक, कैलाश जैन ने बताया कि उनके पूर्वज इतने अमीर हो गए कि वह अपने पैसे को सुरक्षित रूप से छिपाने के लिए दूसरे स्थानों पर चले गए। उन्होंने बताया कि पैसा छिपाने के लिए उसके पूर्वज घी के डिब्बे इस्तेमाल करते थे । लोगों को डराने के लिए कहते थे कि इस घर में साँपों का पहरा है ।