फुर्तीली उंगलियों पर नाचती कठपुतलियां शाही दरबारों के मनोरंजन का साधन थीं
कलाकार की फुर्तीली उंगलियों पर नाचती हुई कठपुतलियों का प्रदर्शन आपने अवश्य देखा होगा। ये कठपुतलियां चुलबुले रंग, तेज चेहरे की विशेषताएं, निपुण चाल, एक विशिष्ट पारंपरिक अवतार में चीखती आवाजें और सीटियों उत्साहित दर्शकों के सामने कलाकार द्वारा नचाई जाती हैं ।
पुतली भाट इस कला की खोज करने वाले पहले लोग थे। ये मूल रूप से राजस्थान की जनजातियाँ थीं जो अपनी स्व-निर्मित कठपुतलियों को लेकर विभिन्न गाँवों की यात्रा करती थीं और विशाल जनसंख्या का मनोरंजन करती थीं तथा अपनी रोजी-रोटी कमेटी थीं । धीरे धीरे इस कला ने राजस्थान के शाही घरानों में लोकप्रियता हासिल की।धीरे धीरे भाट समुदाय विभिन्न राज्यों में बस्ते गए तथा कठपुतलियों द्वारा शाही दरबारों के मनोरंजन का साधन बन गए । शाही दरबारों के राजाओं और रानियों से उनके काम के लिए उन्हें बहुत सम्मान और सराहना मिली।
राजस्थान के महाराजाओं को कला और मनोरंजन का शौक था जिसके कारण उस समय कठपुतली नृत्य खूब फला-फूला। इस कठपुतली नृत्य की विशेषता यह थी कि यह न केवल मनोरंजन का साधन था बल्कि समाज को सामाजिक और नैतिक शिक्षा भी देता था।