गोडावण के संरक्षण के लिए समर्पित पहली वन रक्षक महिला सुखपाली देवी
(शिव प्रकाश गुर्जर द्वारा) राजस्थान के राष्ट्रीय रेगिस्तान पार्क को विश्व भर में “गोडावण” (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) की अंतिम शरण स्थली माना जाता है। इसमें स्थित सुदासरी नामक स्थल गोडावण के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है, यहाँ आज भी यह फल-फूल रहे है। इनको यहाँ सुरक्षा मिले इसके लिए अनेकों लोग कड़ी मेहनत करते है, इसी कड़ी में एक महत्वपूर्ण नाम रहा है- सुखपाली देवी का जो राजस्थान वन विभाग में वन रक्षक के रूप में कार्यरत है। जहाँ अन्य लोग इस क्षेत्र में पानी की कमी के कारण इसे काला पानी की संज्ञा देते हैं, एवं काम करना नहीं चाहते वहीँ सुखपाली ने इस कठोर पारिस्थितिक तंत्र को दिल से स्वीकार किया।
संकटापन्न सूची में शामिल गोडावण पक्षी के संरक्षण लिए सुखपाली पहली महिला वनरक्षक के रूप में कार्यरत रही है जिसने पूर्ण मुस्तैदी के साथ मरुस्थल के सभी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए महती भूमिका निभाई हैं। और यही नहीं वह अपनी ढाई साल की बच्ची के साथ कठिन क्षेत्र में रहकर बुलंद हौसलों के साथ कार्य किया हैं। वह जाबाज़ महिला वनरक्षक वर्तमान में जोड़बीड़ गिद्ध संरक्षण अभयारण्य में कार्यरत है।
सुखपाली बताती है कि, गोडावण एक बहुत ही शर्मिला पक्षी हैं, जो एक साल में एक ही अंडा देता हैं। इन अंडो को दो मुख्य खतरे हैं एक तो जंगल मे विचरण करने वाले पशुओं के खुरों से कुचला जाना और दूसरा आबादी क्षेत्र से आने वाले आवारा कुत्ते द्वारा नुकशान। सुखपाली ने गोडावण के इन्ही दुर्लभ अंडो की देखभाल की। इसके अलावा मादा गोडावण के लिए पानी की व्यवस्था को भी सुचारु रखा ताकि मादा को पानी की तलाश में अंडो से अधिक दूर नहीं जाना पड़े, और जब तक अंडो से चूजे बाहर नहीं आ गए तब तक सुखपाली उनकी देखभाल करती रही।
सुखपाली बताती हैं कि, अवैध मानवीय गतिविधि अक्सर यहाँ होती रहती हैं कुछ महीनों दिवाली से पहले अक्टूबर में एक चिंकारा का शिकार हो चुका था। शिकारी को पकड़ने के लिए सुखपाली और इनके साथी अलग-अलग दल बनाकर शिकारी को ढूंढने के लिए रवाना हो गए। शिकारी को तो इन्होने सफलतापूर्वक पकड़ लिया लेकिन मृत जानवर के अवशेष इन्हे नही मिले क्योंकि उसे किसी दूसरी गाड़ी वाले लेकर फरार हो गए और बहुत कोशिश के बाद भी वो पकड़ में नही आ पाया। लेकिन जो शिकारी पकड़ा गया उसे पर कानूनी कार्यवाही के लिए पुलिस को सौंप दिया। ( ajasthanbiodiversity.org से साभार )