shiroz 730x518 - एसिड हिंसा से पीड़ित आगरा की ये जिंदादिल लड़कियां

एसिड हिंसा से पीड़ित आगरा की ये जिंदादिल लड़कियां

Agra

( अनिल शुक्ला ) आगरा। किसी के लिए भी ‘शीरोज हैंगऑउट’ में दाखिल होना गहरे दुख और संत्रास का सबब होता है। महिलाओं के विरुद्ध होने वाली एसिड हिंसा के ख़िलाफ़, एक खास उद्देश्य और विचार के प्रचार-प्रसार के लिए बना रेस्त्रां। आगरा में बसा यह एक ऐसा पड़ाव है जिसे ‘एसिड अटैक’ में ज़ख़्मी होने के बाद बच निकली बहादुर लड़कियां संचालित करती हैं। देश-विदेश से आने वाले सृजनात्मक प्रवत्ति के लोगों ने इन लड़कियों और उनके त्रासद जीवन पर अनेक चर्चित डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण किया है। देश विदेश के बहुत से पत्रकारों ने अख़बारों और पत्रिकाओं में इन पर व्यापक न्यूज़ रिपोर्ट लिखी हैं। दीपिका पादुकोण अभिनीत फ़िल्म ‘छपाक’ भी ‘शीरोज’ और इसके संगठन ‘छाँव फाउंडेशन ‘ से जुडी लड़कियों के जीवन और संघर्ष की अनोखी दास्तान पर बनी मार्मिक फ़िल्म थी। फ़िल्म की निर्माता-निर्देशक मेघना गुलज़ार एक बार यूँ ही आगरा भ्रमण के समय घूमते-टहलते ‘शीरोज हैंगऑउट’ के परिसर में दाखिल हुई थीं और कुछ घंटे यहाँ बैठने के बाद इन जांबाज़ तथा बहादुर लड़कियों की दास्तान सुनकर जब बाहर निकली तो उनके ज़हन में नयी-नवेली फ़ीचर फ़िल्म का ताना-बाना उमड़-घुमड़ रहा था, पर्याप्त रिसर्च के बाद जिसे उन्होंने अपनी फ़िल्म की कहानी में ढाला।
ताजमहल के ठीक पिछवाड़े कई बरस पहले जब ग़मज़दा लेकिन ज़िंदादिल लड़कियों का यह ठिकाना बसाया गया था तब से मेरी यहाँ जाने की इच्छा थी लेकिन एक या दूसरी वजह के चलते आज पहली अप्रैल को ही मैं और मनीषा यहाँ पहुँच सके। मेरी मुलाक़ात गीता और नीतू नामकी मां-बेटी से हुई। दिन की अपनी ‘शिफ़्ट’ निबटा कर वे घर जाने की तयारी में थीं। गीता के पति ने आक्रोश में जब अपनी पत्नी पर एसिड फेंका तब उसकी चपेट में 2 साल की उसकी नवजात शिशु नीतू भी आ गयी। मां के साथ बच्ची भी झुलस गयी और उसकी दोनों आँखें चली गयीं। कई दफ़ा की ‘ऑपथेलेमिक सर्जरी’ और आज 30 साल से ज़्यादा का समय बीत जाने के बावजूद वह साफ़-साफ़ नहीं देख सकती। इसी तरह रूपा, बाला, डॉली, रुकैया और मधु मिलीं। सबके पास अपने-अपने दुख की विराट गाथाएं हैं। हो सकता है इनमें से कुछ को आपने अख़बारों और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में देख रखा हो। जानकर आप दुखी हुए हों। सुनकर हम पति-पत्नी का भी मन विचलित हो गया।
दुःख की इस बगिया में लेकिन सुख से दमकता एक गुलाब भी है। इस गुलाब का नाम है सिम्मी। सिम्मी ‘एसिड सर्वाइवर’ मधु की 18 बरस की बेटी है। मधु युवा अवस्था में ही कॉलेज जाते समय एसिड अटैक का शिकार हुई थी। बहुत सालों के बाद उसने चाय का खोखा चलने वाले एक युवक से विवाह किया। 3 बच्चों में सिम्मी उसकी सबसे बड़ी संतान है। मधु कोई 4 साल पहले ‘शीरोज’ और ‘छाँव फाउंडेशन’ से जुडी। सिम्मी उस समय 14 साल की स्कूल ड्रॉपआउट थी। स्कूल छोड़े उसे मुद्दत हो गयी थी। ‘छाँव फाउंडेशन’ न सिर्फ़ एसिड हमलों की शिकार लड़कियों और महिलाओं का सम्पूर्ण लालन-पालन करता है बल्कि उनके आश्रितों की भी पूरी देखभाल करता है। सिम्मी जब मां के साथ ‘शिरोज़ हैंगऑउट’ आने-जाने लगी तो ‘छाँव फाउंडेशन’ के वॉलेंटियर्स ने उसे भी हाथों-हाथ लिया। उन्होंने उसे स्कूल जाकर पढ़ाई की अपनी टूटी श्रंखला को फिर से जोड़ने को प्रेरित किया। वह तैयार हो गयी। 2 साल बाद उसने हाई स्कूल का प्राइवेट इम्तहान दिया और वह ठीक ठाक नंबरों से पास भी हो गयी। वॉलेंटियर्स ने उसके सांस्कृतिक उत्थान की भी पहल की। उसे गायन, अभिनय और नृत्य के लिए अलग-अलग प्रशिक्षण शालाओं में भेजना शुरू किया। फिलहाल वह आने वाले दिनों में इंटरमीडिएट की परीक्षा की तैयारी में जुटी है। इसके अलावा उसने आगरा के सदर बाज़ार की एक प्रसिद्द ‘डांस अकेडमी’ में ‘बेसिक’ डांस सीखा। डांस का उसका आगे का प्रशिक्षण चल रहा है। इस बीच वह ‘एकेडमी’ की इस शाखा का प्रबंधन भी संभाल रही है।
चौड़ा माथा, बड़ी-बड़ी आँखें, गोल-मटोल गाल, मद्धिम बाल, श्याम वर्ण और गहरी मुस्कराहट से भरे चेहरे वाली सिम्मी पहली नज़र में ही किसी को भी आकर्षित करती है। हम लोग जब वहां पहुंचे तो वह अपनी ‘एकेडमी’ से ‘थकी हारी’ लौटी थी। मेरे अनुरोध पर वह हँसते हुए तत्काल डांस करने को तैयार हो जाती है। ‘हैंगआउट’ की 2 टेबल खिसका कर उसके लिए ‘डांसिंग फ़्लोर’ तैयार किया जाता है। म्यूज़िक सिस्टम ‘ऑन’ होता है और वह एक पंजाबी लोक गीत पर नाचना शुरू कर देती है। उसका पूरा शरीर नृत्य के साथ बाबस्ता है। मैं गीत के शब्दों को नहीं भांप पाता लेकिन उनकी अभिव्यक्ति मुझे सिम्मी के डांस में दिखती है। उसका शरीर, चेहरा और दमकती आँखें, सब मस्त होकर नृत्य मुद्रा में लिप्त हैं। वह कोई 6 मिनट तक निर्बाध गति से नृत्य प्रदर्शन करती रही। उसने अपने नृत्य से जैसे वहां मौजूद हम सभी को ‘हिप्नोटाइज़’ कर लिया। एक युवा दंपत्ति, जो अभी तक ‘हेंगआउट’ में खाने- पीने में मशगूल थे, सब कुछ छोड़ कर सिम्मी की नृत्य भंगिमाओं में खो जाते हैं। नृत्य ख़त्म होते ही युवा दंपत्ति की लड़की उसे घेर लेती है। सिम्मी उसके तमाम सवालों का जवाब देती जाती है। वह उस लड़की को अपने ‘इंस्टाग्राम’ एकाउंट की बाबत बताती है। लड़की उसका आईडी नोट करती है।
सिम्मी सभी एसिड अटैक सर्वाइवर महिलाओं की चाहना है। सभी उसे बेइंतिहां प्यार करते हैं। पहली नज़र में मैं और मनीषा भी उसे प्यार करने लग जाते हैं।
मन में यह सवाल भी उमड़ता-घुमड़ता है कि क्या और बड़ी होकर सिम्मी भी ‘एसिड अटैकर्स’ के विरुद्ध चलने वाले ‘छाँव’ के बड़े लोक अभियान का हिस्सा बनना पसंद करेगी?