आगरा शहर की पुरानी यादें दूर जाने पर हर पल याद आती हैं

Agra

( निशीथ सक्सेना IFS, भू पू मुख्य वन संरक्षक दिल्ली द्वारा ) आगरा शहर की बात ही कुछ और है,ये अपने आप में एक दुनिया है मेरी यादें बचपन से जुड़ी है जो चाहे वो आगरा कॉलेज के मैदान में क्रिकेट खेलना हो या नागरी प्रचारिणी में जाकर किताबों और अख़बारों को वहंा पढना हो नागरी प्रचारिणी से उतरते हुए सीढ़ियों से गोकुलपुरी में आना और वहाँ पर संगमरमर के कारीगरों काकाम करते देखना उनके कांच के अल्मारी में में सजी हुई मूर्तियों छुपी कलाकारी मेरी स्मृति में ताज़ा हैं
गोकुलपूरे में कचौड़ियों का स्वाद लेना और ढेर सारी जलेबी खाना दिमाग़ से उतरा नहीं है गोकुलपुरा से राजामंडी की तरफ़ जाते हुए दोनों और दुकानों को निहारना फलों की दुकानें फलों का ताज़ा रस की ख़ुशबू और रस निकालने वाली मशीन में लगी धूप की ख़ुशबू अभी भी स्मृति में ताज़ा है वहाँ पर पुरानी दुकान ,दांतों की क्लीनिक है जिसमें डॉक्टर एन स्वरूप का चेहरा कभी कभी बाहर दिखता था और आगे मंजुश्री टॉकीज सिर्फ़ थोड़ा आगे बिना शू कंपनी की दुकान और चौराहे के बाई और बढ़िया बर्फ़ की सिल्ली पर रखा हुआ पान के पत्ते को लगवाना और ढेर सारा गुलकंद मुँह में घुलते हुए महसूस करना कितना अच्छा लगता था तब हरिपर्वत के पंछी के एक पेठे का कभी कभी स्वाद लिया जाता था कैप्री की कॉफ़ी बड़ी लग्ज़री हुआ करती थी लेकिन हमारे दादा लोग उसका स्वाद भी हमें कराते रहे हैं एवं कराते रहते थे वहाँ से घूमता हुऐ राजा मंडी स्टेशन पर अब एक AH वीलर की दुकान थी उस पर रोज़गार समाचार और तरह समाचार के समाचार पत्र ,पत्रिकाएं उनको मुफ़्त में पढ़ते था और एक छोटी सी सस्ती मैगज़ीन ख़रीदना कितना अच्छा लगता था कभी कभी पैदल चलते चलते है तक चुंगी के दफ़्तर तक तक और फिर अंजना
सिनेमा ये बड़े बड़े होर्डिंग्स को देखते थेऔर तय करना कि कब प शो के निर्विवाद रूप से देखा जाकर देखा जाए जिससे घरों पता न चले तो घूमते घूमते सैण्ड जॉन्स कॉलेज के गलियारों को निहारते हुए हनुमानजी के मंदिर को बाहर से हाथ जोड़ जोड़ कर के प्रसाद
लेते हुए हम कितनी ही बार लौटे कभी कभी शाम को पोस्ट ऑफ़िस खुला देखते हुए पूछते थे कि हमारे डॉक तो नहीं आयी। राम भाई भाई के कढ़ाई का दूध कब गुलाबी होगा इसका इंतज़ार रहता था ,रात में में दूध पीने जाते थे।