रिक्शा चालक से बने एक कामयाब उद्यमी आगरा के हरीकिशन
कहते हैं यदि दृढ़ संकल्प मज़बूत हो तो सब कुछ संभव। ऐसी ही कहानी रही है आगरा के हरिकिशन पिप्पल की। बचपन से ही खाए हैं गरीबी के थपेड़े हरिकिशन पिप्पल के पिता उत्तरप्रदेश के आगरा में जूते बनाने की एक छोटी-सी फैक्टरी चलाते थे।वे जातिवादी भेदभाव के भी शिकार रहे थे , लेकिन विपरीत परिस्थितियों व बड़ी-बड़ी चुनौतियों के सामने उन्होंने कभी हार नहीं मानी
तबीयत कुछ इस तरह से बिगड़ी कि पिता काम करने की स्थिति में नहीं रहे, इसीलिए घर-परिवार चलाने की जिम्मेदारी हरिकिशन के कंधों पर आ गयी। घरवालों को बताए बिना वे शाम को साइकिल-रिक्शा चलाने लगे जो उनके मामा के बेटे की थी। कोई उन्हें पहचान न ले इस मकसद से वे अपने चेहरे पर कपड़ा लपेटकर साइकिल-रिक्शा चलाया करते थे। पिता की फैक्ट्री दोबारा शुरु करने के फैसले ने डाली मजबूत नींव गरीबी के थपेड़े हरिकिशन को तोड़ नहीं पाये, बल्कि इससे उनका हौसला और बढ़ गया। उन्होंने निश्चय किया कि एक दिन वे अपने पिता की फैक्टरी दोबारा शुरू करेंगे। हरिकिशन ने आगरा के जैनसन पिस्टन में मजदूरी का काम भी किया था । इसी बीच हरिकिशन की शादी भी हो गयी। साल 1975 में हरिकिशन पिप्पल ने अपनी पत्नी गीता की सलाह पर पंजाब नेशनल बैंक में लोन का आवेदन दिया जिससे पुश्तैनी व्यवसाय फिर से शुरू किया जा सके। बैंक ने 15 हज़ार का लोन पास कर दिया। कुछ घरेलू समस्याओं के चलते आया हुआ पैसा जाता हुए दिखा, तो पत्नी ने हरिकिशन से लोन की रकम बैंक को वापस करने को कहा, लेकिन वे इरादों के पक्के थे। बड़ी मुश्किल से जो रास्ता दिखा था उसे वे छोड़ नहीं सकते थे। उन्होंने वह पुश्तैनी घर ही छोड़ दिया और आगरा के गांधी नगर में एक कमरा किराये से लेकर अपने कारखाने की नींव रखी।