Tonga - तांगेवालों को  मोबाइल  कान-क्लीनर भी  कहा जाता था

तांगेवालों को मोबाइल कान-क्लीनर भी कहा जाता था

Agra

आगरा। बताते हैं मुंशी प्रेमचंद कुछ लिखने के लिए अपने विचारों और कल्पनाओं को सक्रिय करने के लिए एक तांगा -सवारी का आनंद लेते थे। आगरा भी एक समय लखनऊ की तरह तांगेवालों का महत्वपूर्ण केंद्र था। दस वर्ष पूर्व लोग आगरा से सिकंदरा जाने के लिए के लिए तांगों का इस्तेमाल किया करते थे। तांगेवालों को बहुत से लोग मोबाइल कान-क्लीनर भी कहते हैं क्योंकि उनके पास हमेशा कुछ न कुछ रोचक कहानी सुनाने के लिए होती है । तांगों की दौड़ में एक ताल होती है, जो घोड़े के जूते द्वारा उत्पादित ध्वनियों के साथ युग्मित होती है। कहा जाता है यह जहाँगीर का दिमाग था, जो कलात्मक और सौंदर्य बोध से भरपूर था, जो उन घुड़सवारों को गाड़ियाँ देता था जिसपर वे सवारी ले जाते थे लेकिन तांगे पर लोगों के बीच नज़दीकी होने के कारण महिलाओं को ले जाने की अनुमति नहीं थी। जहाँगीर ने महिलाओं को अलग से सजी हुई गाड़ियाँ दीं थी जैसे पालकी वाहन आदि।
बताते हैं ब्रिटिश राज के दौरान कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति आशुतोष मुखर्जी टोंगा में में जाते थे तो वे रसगुल्लों से भरे एक बड़े कटोरे के साथ तांगे में करते थे, जिनका वह विश्वविद्यालय के गेट पर पहुंचने तक उपभोग करते थे। उन्होंने तांगा – सवारी का हमेशा आनंद लिया क्योंकि इसने बंगाल के दिग्गज रसगुल्लों के शौकीनों को एक ‘स्वादिष्ट ट्विस्ट’ दिया।