आगरा के ऐतिहासिक ‘ चीनी का रोजा़ ‘ स्मारक की दशा बहुत खराब – राय
आगरा। अमरीका में भतपूर्व कार्यरत आगरा के वैज्ञानिक आनंद राय ने कहा कि मैने आगरा में रहते हुए भी ‘चीनी का रोजा़’ स्मारक नहीं देखा था। मकबरे का निर्माण 1635 में हुआ था। विरासतों से जुड़े एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में वहां गया तो पाया कि इमारत की दशा बहुत खराब है, 60% दीवारों से नक्काशी उखड़ चुकी है। तभी बदरंग दीवार पर तेजी से चढ़ती एक सुंदर गिलहरी पर नजर पड़ी, तो आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया को मन ही मन धन्यवाद दिया, कि दीवारों का वह हाल न होता तो बेचारी गिलहरी कैसे चढ़ती भला।
चीनी का रोजा इसे इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मुख्य रूप से चीनी की रंगीन टाइलों से बना है। यह भारत में अपनी तरह की पहली इमारत थी जिसे चमकता हुआ कांच की टाइलों से बड़े पैमाने पर सजाया गया था और इसलिए, उपयुक्त रूप से भारत में वास्तुकला की इंडो-फारसी शैली में एक मील का पत्थर माना जाता है। मकबरा आयताकार आकार में बनाया गया है और मुख्य रूप से भूरे पत्थर से बना है। इसकी दीवारों को रंगीन टाइलों से सजाया गया है और इस्लामी धर्मग्रंथों से विद्वानों के शिलालेखों को धारण किया गया है। मकबरे के मध्य भाग में अष्टकोणीय आकृति है, जिसमें आठ मुड़े हुए कुंडल हैं। मकबरे की सबसे खासियत अफगान शैली का गोल मकबरा है जिसे पवित्र इस्लामिक ग्रंथों से उकेरा गया है। कब्र, दुर्भाग्य से खंडहर में, अभी भी इसकी मूल भव्यता की गवाही देती है।