आगरा की 100 वर्ष पुरानी किराने की दुकान जहाँ अब भी बंशज बैठते हैं
( राजीव सक्सेना द्वारा ) आगरा : सामाजिक सरोकारों में योगदान ,दान ,धनाढ्य और सहष्णुता आगरा की लोक परंपरा रही है।स्वतंत्रता पूर्व काल से चली आ रही इस परंपरा में बेलनगंज, रावतपडा क्षेत्र के कारोबारियों का इसमें खास योगदरान रहा है। इन्हीं में वैश्य समाज के लाला सोहन लाल जी का नाम भी उल्लेखनीय है। संवत 1928 यानि सन 1871में लाला सोहन लाल जी ने मैसर्स मोहन लाल फर्म बनाकर अपना कारोबार शुरू किया था। गोटा -किनारी खरीदन और थोक में बेचना (आढत) इनका मुख्य और आधारभूत कारोबार था।व्यापारिक कुशलता और लोकव्यवहार की समृद्ध परंपरा की विरासत छोडकर संवत 1952(सन 1897) में वह गोलोक वासी हुऐ ।
–आत्म अभिमान और प्रेरक
उन्नीसवीं सदी तक रहे भारतीय कारोबार और कारोबारियों की स्थिति व परंपराओं पर प्रकाश डालने वाली पुस्तक ‘भारतीय व्यापारी ‘ (Bharatiya Vyapari) प्रकाश में आने से सोहन लाल जी और उनके जनजीवन में रहे योगदान को ताजा करना अनायास ही सामायिक हो गया। हालांकि इस किताब में आगरा के अन्य कारोबारियों का भी उल्लेख है। गोटेवाले परिवार की मौजूदा पीढी के श्री बृजेश अग्रवाल जो कि ‘फैमली हिस्ट्री’ की महतत्ता की समक्ष रखते हैं का कहना है कि किताब में अपने पूर्वज और उनके कार्यों का उल्लेख किसके लिये महत्वपूर्ण होगा।हमारे परिवार के सदस्यों के नाम के साथ जो उपनाम ‘गोटेवाला’ जुडा हुआ है, वह हमारे श्रद्धेय लाला मोहन लाल जी की कमाई कीर्ति और ख्याति का ही परिणाम है।उनका प्रयास है कि भावी पीढियां भी अपने परिवार की परंपरा और समाज के लिये रहे योगदान को जाने और गौरवान्भुति महसूस करें।
–पाक साफ कुशल व्यापारी
लाला सोहन लाल का कुशल व्यवहार और कारोबारी समझ के कारण आगरा के व्यापार जगत मेंउनका विशेष सम्मान था।गोटा के कारखाने दार और जरी के कारीगर उनकी आढत पर ही अपना माल उतारना किसी भी अन्य ठिये से ज्यादा उपयुक्त माते थे।जिससे भी पहली बार कारोबारी व्यवहार शुरू हुआ और कब पारवारिक संबधों में तब्दील हो गया पता ही नहीं चलता था।
कारोाबरी लेन देन के मामले में वह वह हमेशा पाक साफ रहे।रहे।लेन देन की शुरू आत होने के साथ ही धीरे धीरे बैकिंग का काम भी उनके कारोबार में शामिल हो गया। किसानों के साथ करोबारी संबधों के चलते खेती की जमीन में भी उन्होंने काफी निवेश किया और जमींदार के रूप में भी अच्छीखासी साख कमाई।
–समाज सेवा
अखबार या अन्य किस्म के प्रचार माध्यम तो उस समय आगरा में थे नहीं ,केवल पंचायत,मेले,मुशयरे ,रास,बढई,स्वांग आदि के आयोजना के शादी बारातों के अवसर पर ही लोग जुटते थे। नाऊ ठाकुर, ढिढोलवी (डुगडगी पीटने वाले) संवाद का प्रचलित माध्यम थे।अपवाद स्वरूप सरकारी अमले के द्वाारा बलाई बैठके भी लोगों के जुटने और परस्पर संवाद करने का माध्यम थी। ऐसे में काम करवाके पब्लिसिटी मिलन या यश कमाने के काम करवाने की प्रवृत्ति बहुत ही कम थी।
–श्रद्धालुओं के लिये कैलाश में बनवाया था मकान
मोहन लाल जी ने कैलाश (ग्राम पंचयत स्वामी -आगरा) में एक मकान सार्वजनिक प्रयोजन के लिये बनवाया।उस समय कैलाश महादेव मन्दिर परिसर तक पहुंचना आज का सा सहज नहीं था,पैदल,ट्टुओं,बैलगाडी या फिर इक्के पर सवारी कर पहुंचा रते थे।उसी दिन पहुंच कर वापस लोटना व्यवहारिक नहीं माना जाता था। सामान्यत: रात्रि में विश्राम कर भरे बेला में स्नान कर वापसी होती थी। सपरिवार कैलाश पहुंचने वालो के लिये धर्मार्थियों के द्वारा बनवाये गये ये मकान सुरक्षित आश्रय के लिये बहुत ही उपयोगी होते थे।सेहन लाल जी ने गंगा तटीय धार्मिक स्थल सोरोंजी में एक बगीची बनवायी।इसमें मीठे पानी का कूंआ और खाना बनाने की व्यवस्था भी थी।
–राधा मोहन का मन्दिर बनवाया
उन्हों ने रावतपडा में राधा माहन जी का एक मन्दिर भी बनवाया और उसका संचालन सुचारू रूप से करने के लिये एक मकान मन्दिर के नाम कर दिया। सार्वजनिक प्रयोजन के खर्च को पूरा करने के लिये अपने दौहित्र को कुछ संपत्ति(मकान) दे दी ।
–कारोबार का महत्वपूण दस्ताबेज
भारतीय व्यापारियों का परिचय ‘ एक महत्वपूर्ण पुस्तकार दस्ताबेज है,जो कि आगरा के आर्थिक क्षेत्र में रहते आये योगदान के उस दौर पर प्रकाश डालता है,जबकि शहर में न तो बिजली थी और नहीं मालढुलाई के लिये मोटर वहनों का प्रचलन शुरू हुआ था।
किताब में आगरा के कारोबारियों और उनकी उपलब्धियों के अलावा परोपकारी कार्यों का भी उल्लेख है।
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